Special Marriage Act 1954, Hindu Marriage Act 1955" width="414" height="233" />
भारत एक विविधतापूर्ण देश है। यह विविधता में एकता की भूमि है जहां विभिन्न जीवन शैली और शिष्टाचार के लोग एक साथ रहते हैं। ऐसे में यहां अंतरधार्मिक और अंतरजातीय विवाह आम बात है। इन विवाहों को मान्यता देने के लिए अलग-अलग कानून बनाए गए हैं। इसके अलावा विभिन्न धर्मों के लिए व्यक्तिगत कानूनों का भी निर्माण किया गया है। जिनमें हिंदू विवाह अधिनियम 1955, मुस्लिम पर्सनल लॉ 1937, भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, पारसी विवाह और विवाह विच्छेद 1936 व विशेष विवाह अधिनियम 1954 मुख्य हैं।
यह जानकारी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे युवाओं के लिए भी महत्वपूर्ण है, आइए जानते हैं इनमें से ही कुछ विशेष कानूनों के बारे में.
Trending Videos यह वीडियो/विज्ञापन हटाएंSpecial Marriage Act 1954, Hindu Marriage Act 1955" width="414" height="233" />
मुस्लिम पर्सनल लॉ (Muslim Personal Law), 1937 –भारतीय संविधान का अनुच्छेद-14 भारत के सभी नागरिकों को कानून का समान संरक्षण देता है, लेकिन बात जब व्यक्तिगत मुद्दों (शादी, तलाक, विरासत, बच्चों की कस्टडी) की आती है तो मुसलमानों के यह मुद्दे मुस्लिम लॉ के अंतर्गत आ जाते हैं। यह कानून बनाने के पीछे मकसद भारतीय मुस्लिमों के लिए एक इस्लामिक कोड तैयार करना था। उस वक्त भारत पर शासन कर रहे अंग्रेजों की कोशिश थी कि वे भारतीयों पर उनके सांस्कृतिक नियमों के अनुसार ही शासन करें। तब से मुस्लिमों के शादी, तलाक, विरासत और पारिवारिक विवादों के फैसले इस अधिनियम के तहत ही होते हैं। इतना ही नहीं, इस एक्ट के मुताबिक सरकार भी व्यक्तिगत विवादों में दखल नहीं कर सकती। भारत में अन्य धर्म समूहों के लिए भी ऐसे ही कानून बनाए गए हैं।
Special Marriage Act 1954, Hindu Marriage Act 1955" width="414" height="233" />
विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act), 1954 –यह अधिनियम अंतरजातीय और अंतरधार्मिक विवाह को मान्यता प्रदान करने के लिए लाया गया था। यह पंजीकरण के माध्यम से विवाह को मान्यता प्रदान करता है। इसकी विशेषता है कि इसमें दोनों पक्ष धर्म और जाति का परित्याग किए बिना ही वैवाहिक जीवन बिता सकते हैं। यह अधिनियम सभी धर्मों और जातियों पर लागू होता है। इस कानून के तहत उत्तराधिकार का मामला भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत तय किया जाता है। यदि वैवाहिक दंपत्ति हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख हो तो इसे हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत ही तय किया जाएगा। इसमें तलाक के लिए शादी से एक वर्ष की अवधि के बाद ही आवेदन दिया जा सकता है। हालांकि, इसके तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता प्रदान करने की कोई व्यवस्था नहीं है।
Special Marriage Act 1954, Hindu Marriage Act 1955" width="414" height="233" />
हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act), 1955यह कानून हिंदू धर्म में विवाह को कानूनी वैधता प्रदान करने व विवाह की शास्त्रीय पद्धति को संहिताबद्ध करने के लिए लाया गया था। इसमें तलाक व पुनर्विवाह की व्यवस्थाएं भी हैं। यह शास्त्रीय परंपराओं के साथ ही आधुनिक सुधारों को अपने साथ लेकर चल रहा है।